आदिवासी अंचल की अस्मिता को चाटते हुए डुलहरी पंचायत में भ्रष्टाचार की नई गाथा लिखी जा रही है। सवाल यह नहीं है कि सरपंच, सचिव, उपयंत्री राहुल तेकाम और ठेकेदार ईश्वरी उर्फ ‘वुगई’ साहू ने मिलकर पर्कुलेशन टैंक में घोटाला किया, सवाल यह है कि क्या जनपद पंचायत मेहंदवानी अब भी इन्हें संरक्षण देती रहेगी? आख़िर कब तक इन्हें “पालने के झूले” में झुलाया जाएगा?
मनरेगा जैसी योजना, जो ग्रामीण भारत की रीढ़ मानी जाती है, उसे इस गिरोह ने जेब भरने का जरिया बना डाला है। 17 लाख की लागत से बना परकुलेशन टैंक पहली ही बारिश में फुस्स हो गया। टैंक की दीवारें बह गईं, एप्रन बह गया, और बचा सिर्फ़ एक शर्मनाक गड्ढा … जिसमें विकास डूबा पड़ा है।
ग्रामीण कहते हैं कि टैंक की नींव में मिट्टी के लौंदे तक नहीं डाले गए। कुछ तो यह भी बता रहे हैं कि निर्माण कार्य पूरा होने से पहले ही MIS भर कर भुगतान की तैयारी कर ली गई थी। यानी “काम बाद में, पैसा पहले” यह नया विकास मॉडल अब डुलहरी का सर्टिफाइड फार्मूला है।
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निर्माण नहीं, सिर्फ़ छलावा
जिस पर्कुलेशन टैंक से ग्रामीणों को पानी मिलना था, वो टैंक अब भ्रष्टाचारियों की नीयत की तरह खाली पड़ा है। उसमें बरसात का 10 ड्रम पानी भी नहीं ठहर पा रहा। एप्रन बहा, बेस्ट बीयर धंस रहा है, और निर्माण स्थल पर कोई बोर्ड तक नहीं यह केवल लापरवाही नहीं, यह सुनियोजित भ्रष्टाचार है।

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अधिकारी मौन, ठेकेदार दबंग
ठेकेदार ईश्वरी साहू राजनीतिक रसूख के दम पर ठेकेदारी नहीं, ठगी कर रहा है। सूत्र बताते हैं कि पंचायत से लेकर जनपद स्तर तक इस पूरे खेल में मिलीभगत है। उपयंत्री राहुल तेकाम की काली करतूतें केवल डुलहरी तक सीमित नहीं हैं यह तो केवल एक ‘सैंपल केस’ है। अगर जांच हो जाए, तो विकासखंड बदल-बदलकर की गई घोटालों की पूरी डायरी सामने आ जाएगी।
शासन-प्रशासन की चुप्पी… क्या यह सहमति है?
ग्रामीण मांग कर रहे हैं कि जब तक पुनः गुणवत्ता परीक्षण न हो जाए, कोई भुगतान न किया जाए। लेकिन यह मांग बेवजह की उम्मीद लगती है, क्योंकि यहाँ तो अधिकारी खुद नीयत की दलदल में धंसे हुए हैं। जनपद मेहंदवानी की भूमिका भी शक के घेरे में है क्या ये सिर्फ तमाशबीन बने रहेंगे?
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क्या यही है ‘विकास’?
अगर यही विकास है तो ग्रामीण इसकी कीमत क्यों चुका रहे हैं? 17 लाख की टंकी, जो 10 ड्रम पानी भी न रोक पाए, वह ‘प्रगति’ नहीं, बल्कि नीतियों की नीलामी है। सचिवों और इंजीनियरों की मिलीभगत से डुलहरी जैसी पंचायतें विकास के नाम पर मज़ाक बनकर रह गई हैं।
यह है सवाल:
जब सवाल पूछे जाते हैं, तो सचिव कहता है “निर्माण कार्य प्रगति पर है…”
क्या भ्रष्टाचार भी अब प्रगति रथ पर सवार हो चुका है?
क्या जवाबदेही सिर्फ़ गरीब मजदूरों और ग्रामीणों की जिम्मेदारी रह गई है?