बीमा के नाम पर धोखा : जबलपुर में हॉस्पिटल्स और प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियों की मिलीभगत से चल रहा बड़ा घोटाला
इंश्योरेंस तो बहाना है, असली मकसद जनता का पैसा खाना है
(सब)
दुर्घटना के समय नहीं मिलता क्लेम, पहले गिनाई जाती थीं ‘सुविधाएं’
जबलपुर शहर में बीते कुछ वर्षों से प्राइवेट हॉस्पिटल और बीमा कंपनियों के एजेंटों की एक सुसंगठित लॉबी सक्रिय है, जो स्वास्थ्य बीमा बेचने के समय मरीजों को झूठे सपने दिखाते हैं।
“कैशलेस इलाज मिलेगा, एडमिट होते ही सुविधा शुरू होगी, सब कुछ इंश्योरेंस में कवर है।”
लेकिन जब वास्तव में कोई दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अस्पताल पहुंचता है, तो क्लेम के नाम पर एजेंट और बीमा कंपनी के अधिकारी
“नई शर्तें, नियम और तकनीकी बहाने’ सामने रखते हैं और मरीज को इलाज के लिए जेब से खर्च करने पर मजबूर किया जाता है।
कैसे होता है खेल?
- बीमा कंपनियों के एजेंट ज्यादा पॉलिसी बेचने के लिए झूठे वादे करते हैं।
- हॉस्पिटल में पहले से मौजूद टीपीए सेटिंग” (Third Party Administrator) के जरिए क्लेम रोके जाते हैं।
- इलाज शुरू करने से पहले ही कहा जाता है कि “क्लेम मंजूर नहीं हुआ” या “डॉक्युमेंट अपूर्ण हैं।’
- मरीज को मजबूरन नकद भुगतान करना पड़ता है, क्योंकि इलाज तत्काल चाहिए।
अंदरखाने की साठगांठ : हॉस्पिटल + बीमा कंपनी + टीपीए

मामले की पड़ताल करने पर सामने आया है कि
- जबलपुर के अधिकांश बड़े निजी अस्पतालों में बीमा कंपनियों के फिक्स एजेंट/टीपीए पहले से मौजूद होते हैं।
- ये टीपीए जानबूझकर इलाज के बाद क्लेम रिजेक्ट करवा देते हैं।
- बदले में अस्पताल सीधे मरीज से पैसा वसूलता है और क्लेम का भुगतान बीमा कंपनी को लौटाता है।
- इस प्रक्रिया में मरीज दोहरा नुकसान उठाता है- बीमा भी गया और जेब से पैसा भी।
विधिक व प्रशासनिक संदर्भ : बीमा अधिनियम और IRDAI नियम
भारत में बीमा संबंधी कार्य IRDAI (Insurance Regulatory and Development Authority of India) के अंतर्गत आते हैं।
IRDAI Health Insurance Regulations, 2016 के अनुसार:
“बीमा कंपनियों को पारदर्शिता और ग्राहकों की सुविधा के लिए स्पष्ट शर्तों के साथ स्वास्थ्य बीमा देना अनिवार्य है।”
Consumer Protection Act, 2019 में :
“बीमा कंपनियों द्वारा गुमराह करना, क्लेम को मनमाने ढंग से अस्वीकार करना उपभोक्ता के अधिकारों का उल्लंघन है।”
लेकिन जबलपुर में इन कानूनों की धज्जियां उड़ रही हैं, और कोई विभागीय अधिकारी इस पर संज्ञान नहीं ले रहा।
प्रशासन आंख मूंदे बैठा, अधिकारी भी ‘सेटिंग’ में शामिल?
सूत्रों की मानें तो कई प्राइवेट अस्पतालों की इंश्योरेंस सेटिंग सीधे विभागीय अधिकारियों तक पहुंच रखती है, जिससे कोई कार्यवाही नहीं होती।
स्वास्थ्य विभाग, उपभोक्ता फोरम, और बीमा नियामक प्राधिकरण (IRDAI) तक कई शिकायतें लंबित हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
जनता की मांग :
- IRDAI से जबलपुर की बीमा कंपनियों और हॉस्पिटल्स की जॉइंट ऑडिट हो।
- उपभोक्ता फोरम में स्वतः संज्ञान लेकर क्लेम धोखाधड़ी के मामलों में कार्यवाही हो।
- मरीजों को इलाज के तुरंत बाद क्लेम अस्वीकार करने की लिखित और प्रमाणिक जानकारी देना अनिवार्य किया जाए।
बीमा प्रणाली में पारदर्शिता ज़रूरी, नहीं तो भरोसा खत्म
बीमा का उद्देश्य है – संकट के समय राहत, लेकिन जब सिस्टम ही मरीज को लूटने का जरिया बन जाए, तो यह न केवल संवैधानिक अधिकारों का हनन है, बल्कि जरूरतमंदों की जिंदगी के साथ सीधा धोखा भी हैl