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रेवांचल टाइम्स जबलपुर
रेलवे विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद कर्मचारियों का सीधा ठेकेदारी में कूदना अब एक आम चलन बनता जा रहा है। खासकर जबलपुर में यह ट्रेंड तेजी से उभर रहा है, जहाँ रिटायर्ड रेलवेकर्मी विभागीय जानकारी और संपर्कों का इस्तेमाल कर सीधे ठेके उठा रहे हैं, और भारी मुनाफा कमा रहे हैं।
विभागीय जानकारी का हो रहा दुरुपयोग
सेवानिवृत्त होने के बावजूद इन कर्मचारियों का विभाग में लगातार आना-जाना बना हुआ है। इन्हें विभाग की आंतरिक प्रक्रियाओं की पूरी जानकारी है और इसी का लाभ उठाकर ये ऑनलाइन कॉन्ट्रैक्ट प्रक्रिया में भाग लेते हैं। उच्चतम दरों पर ठेके लेकर यह मुनाफा बटोर रहे हैं। यह संदेह उठना लाजमी है कि विभागीय मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं।
प्लेटफार्म कैंटीन से लेकर निर्माण कार्य तक हिस्सेदारी
सूत्रों की मानें तो कुछ रिटायर्ड कर्मचारी रेलवे प्लेटफार्म की कैंटीन का ठेका ले चुके हैं, वहीं कुछ अन्य रेलवे के रखरखाव, सफाई, भवन निर्माण और अन्य सेवाओं के ठेके में हिस्सेदार बने हुए हैं। यह कार्य अकेले नहीं बल्कि नेटवर्किंग और राजनैतिक सिफारिशों के दम पर हो रहे हैं।

नेताओं की सिफारिश पर मिल रहे ठेके
जानकारी यह भी सामने आई है कि कई मामलों में इन रिटायर्ड कर्मचारियों को पुनः काम सौंपा गया है, जो नेताओं की सीधी सिफारिश पर हुआ। विभाग पर राजनीतिक दबाव के चलते ऐसे लोगों को बार-बार मौका मिल रहा है, जिससे नई कंपनियों या योग्य युवाओं को अवसर नहीं मिल पा रहे हैं।
युवाओं के लिए अवसर घट रहे
एक ओर बेरोजगार युवा कॉन्ट्रैक्ट के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, दूसरी ओर सेवानिवृत्त लोग पुराने नेटवर्क और संपर्कों के बल पर बार-बार लाभ उठा रहे हैं। यह स्थिति न केवल पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है, बल्कि नए उद्यमियों और योग्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय भी है।

अब सवाल उठता है:
क्या रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए कोई “कूलिंग पीरियड” होना चाहिए?..
क्या विभाग इन अनुबंधों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने में असफल है?..
क्या यह पूरी प्रक्रिया एक सोची-समझी मिलीभगत है?..
रेलवे विभाग और जिम्मेदार अधिकारियों को इस दिशा में तत्काल संज्ञान लेकर ठेके की प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की आवश्यकता है, ताकि नए और योग्य प्रतिभागियों को भी बराबरी का मौका मिल सके।