शहर के निजी अस्पतालों में डॉक्टर(Doctor) से ज्यादा दलालों का डंका बजता है, इलाज के नाम पर कमीशनखोरी
यहां मरीज नहीं, रुपया ठीक होता है
Doctor शहर के कुछ अस्पताल लूट खसोट का अड्डा बन चुके हैं। यहां मरीज नहीं रुपया ठीक होता है। जांच से लेकर इलाज अौर भर्ती से लेकर ऑपरेशन तक में कमीशनखोरी चर्चित है। सच कहें तो जबलपुर शहर में निजी अस्पताल अब महज इलाज के केंद्र नहीं, बल्कि एक सुनियोजित दलाली तंत्र के माध्यम से चल रहे “कमाई के अड्डे’ बनते जा रहे हैं। गंभीर रूप से बीमार मरीजों का भविष्य अब डॉक्टर नहीं, मेडिकल दलालों के हाथों तय हो रहा है—कौन सा इलाज होगा, कहाँ भर्ती किया जाएगा, किस लैब में जांच होगी, और कितना बिल बनेगा —यह सब अस्पताल परिसर में सक्रिय बिचौलियों की सेटिंग से तय हो रहा है।
सक्रिय है दलालों का नेटवर्क – अस्पताल से एंबुलेंस तक फैला खेल
एंबुलेंस चालकों, फार्मेसी वालों, डायग्नोस्टिक सेंटर कर्मचारियों, Doctor और यहाँ तक कि अस्पताल के कुछ स्टाफ तक इस गठजोड़ का हिस्सा हैं। मरीजों को भर्ती कराने से लेकर डिस्चार्ज तक हर कदम पर कमीशन और सेटिंग का खेल चलता है।
कमीशन रेट तय : इंसानियत की कीमत पर सौदेबाजी
दलालों को मिलने वाले तय कमीशन रेट का अंदाजा लगाइए :
- ICU में भर्ती कराने पर – ₹5,000 से ₹10,000 प्रति मरीज
- सर्जरी करवाने पर – कुल बिल का 10% तक
- CT Scan / MRI – ₹300 से ₹1000 प्रति जांच
- ड्रग्स / दवाएं बाहर से – नकली बिल पर 30–50% मार्जिन
मरीजों को डराकर या भ्रमित कर ऑपरेशन कराने के लिए राज़ी किया जाता है। डॉक्टर का निर्णय गौण हो गया है, प्राथमिकता होती है – ज्यादा बिलिंग और ज्यादा कमीशन।*

डॉक्टर भी ‘लाभांश’ के हिस्सेदार?
सूत्र बताते हैं कि कई अस्पतालों में खुद डॉक्टरों Doctor को भी बोनस/लाभ तय होता है – इस आधार पर कि उन्होंने कितने मरीज ICU में डाले या महंगी सर्जरी करवाई। कुछ निजी अस्पतालों में तो यह “परफॉर्मेंस टारगेट” के रूप में लागू किया गया है।
- “हर महीने 20 भर्ती और 10 ऑपरेशन का टारगेट है, तभी बोनस मिलेगा’ – यह बात एक पूर्व कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर साझा की।
मरीजों के नाम पर बनते फर्जी बिल – परिवार कर्ज में डूबे
दलाली तंत्र का खामियाजा उठाते हैं वे मरीज, जिनके परिवार इलाज के लिए जमीन बेच देते हैं, कर्ज ले लेते हैं। कई बार फर्जी दवाओं, दोहरी बिलिंग और गैर-जरूरी जांचों का खेल चलता है।
- मरीज का इलाज ₹20,000 में हो सकता है, पर बिल ₹1.5 लाख तक बना दिया जाता है।
- गरीब, ग्रामीण या अनपढ़ परिवारों को सबसे पहले निशाना बनाया जाता है।
प्रशासन मौन, स्वास्थ्य विभाग बेबस
शहर के स्वास्थ्य अधिकारी या जनप्रतिनिधि इन अस्पतालों के विरुद्ध खुलकर कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। कई अस्पताल मालिकों के राजनीतिक संरक्षण की भी चर्चा है।
कभी-कभार जांच होती भी है तो दलाल पहले से सतर्क हो जाते हैं। डॉक्यूमेंट क्लीन कर दिए जाते हैं, और सब कुछ सामान्य दिखाया जाता है।
जनता की मांग–मेडिकल माफिया पर सर्जिकल स्ट्राइक जरूरी
- स्वास्थ्य विभाग को विशेष ऑडिट कराना चाहिए
- हर प्राइवेट अस्पताल में दलाली नेटवर्क की जांच हो*
- मरीजों के बिल की स्वतंत्र जाँच समिति बने
- दलालों पर सख्त कार्यवाही हो, पंजीकरण रद्द हों
दैनिक रेवांचल टाइम्स इस मामले पर लगातार नजर बनाए हुए है। अगली कड़ी में खुलासा होगा –
CT Scan से लेकर शव वाहन तक – इलाज से पहले जुड़ता है दलाल!”