राजमहल से अदालत तक: आलीराजपुर की 1000 करोड़ की शाही संपत्ति पर फर्जी वसीयत, प्रशासनिक गठजोड़ और जनविरोध की विस्फोटक कहानी
रेवाँचल टाईम्स – देश में इन दिनों जम के फर्जीवाड़ा चल रहा है, फर्जी वसीयत के आधार पर रियासतकालीन विवादित शाही संपत्तियों का नामांतरण, शाही परिवार और रक्त वंशज ने कलेक्टर बेडेकर और राजस्व प्रशासन पर लगाए गंभीर आरोप
✍️ विक्रम सेन
आलीराजपुर।
आलीराजपुर की ऐतिहासिक शाही धरोहरें—जिनकी बाजार कीमत लगभग 1000 करोड़ रुपए आँकी गई है—एक खतरनाक साज़िश, फर्जी वसीयतों, प्रशासनिक संरक्षण और न्यायालय में लंबित सिविल दावों के चलते सुर्खियों में हैं।
इस गहरे षड्यंत्र में कथित उत्तराधिकारियों, भ्रष्ट अफसरों और राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई है, जो पुश्तैनी शाही संपत्ति को औने-पौने दामों में निजी हाथों में सौंपने का प्रयास कर रहे हैं।
सिविल दावा: वसीयत फर्जी, संबंध शून्य
शाही परिवार के वंशजों द्वारा दायर सिविल सूट (क्रमांक RCS A/21/2025 दिनांक 19/06/2025) में साफ तौर पर कहा गया है:
“कथित वसीयत पूरी तरह फर्जी है, और संपत्ति पर दावा करने वालों का रियासत या परिवार से कोई वैधानिक संबंध नहीं है।”

संगठित षड्यंत्र: फर्जी दस्तावेज़ों से शाही विरासत पर कब्ज़ा
श्रीमंत कमलेंद्र सिंह की मृत्यु 6 अगस्त 2024 को हुई थी, उनकी मृत्यु के मात्र एक माह बाद ही फर्जी वसीयत के आधार पर संपत्ति नामांतरण की प्रक्रिया शुरू हो गई। वादी पक्ष का आरोप है कि यह एक पूर्वनियोजित साजिश थी, जिसमें “जागीरा गैंग” और जिले के कुछ वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे।
अंतिम संस्कार नहीं, सीधे देहदान – और फिर वसीयत का खेल
कमलेंद्र सिंह की मृत्यु के बाद पारंपरिक अंतिम संस्कार नहीं हुआ, बल्कि कैंसर पीड़ित शव को गुपचुप राजपीपला मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया — जहाँ न मोर्चरी थी, न प्रोफेसर, न ही छात्र।
वादी पक्ष का आरोप है कि यह संपत्ति वसीयत कर्ता की बिना जानकारी के धोखाधड़ी से उनके निजी सहायकों के सहयोग से हड़पने की साज़िश का हिस्सा था।
स्टाम्प खरीदी में कमलेंद्र सिंह के फर्जी हस्ताक्षर,
अवैध स्वास्थ्य प्रमाणपत्र, संदिग्ध डॉक्टर
3 अगस्त 2022 को जारी स्वास्थ्य प्रमाणपत्र में डॉक्टर वास्कले ने कमलेंद्र सिंह को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बताया — जबकि वह बॉन्ड पीरियड में नियुक्त, गैर-विशेषज्ञ और मेडिकल बोर्ड से बाहर थे। यही प्रमाणपत्र फर्जी वसीयत के साथ संलग्न किया गया।
संपत्तियाँ जिन पर विवाद
आलीराजपुर स्थित शाही राजमहल, विशाल फतेह क्लब
बोरखड़ व आली की ऐतिहासिक हवेलियाँ, प्रताप भवन
रामसिंह की चौकी, बड़ा उंडवा की कृषि भूमि
नई दिल्ली स्थित वसंत विहार का बंगला
अन्य दर्जनों अचल संपत्तियाँ जिनकी कीमत अरबों में आँकी गई है
न्याय की माँग
श्री उदयभान सिंह राठौर और श्री चंद्रभान सिंह राठौर ने न्यायालय से माँग की है कि:
फर्जी वसीयत को निरस्त किया जाए
सभी वैध उत्तराधिकारियों को संपत्ति में अधिकार मिले
दोषी अफसरों पर आपराधिक व विभागीय कार्यवाही की जाए
प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल
वादी पक्ष ने जनसुनवाई और RTI के माध्यम से पूछा है कि जब 10 माह पूर्व ही फर्जीवाड़े की सूचना दी जा चुकी थी, तो तहसीलदार ने कलेक्टर के दबाव और रिश्वत लेकर यह नामांतरण क्यों किया? और अब तक कलेक्टर ने इस पर क्या कार्रवाई की?

जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया
यह मामला सिर्फ पारिवारिक नहीं, बल्कि प्रशासन और भू-माफिया गठजोड़ का जीवंत उदाहरण बन चुका है। विभिन्न संगठनों ने सीबीआई या उच्चस्तरीय न्यायिक जांच की माँग की है।
अब तक इस मामले में 6 प्रकरण हाईकोर्ट से लेकर SDM स्तर तक लंबित हैं।
जनता का प्रतिरोध: जागरूक नागरिक मंच की भूमिका
वरिष्ठ पत्रकार विक्रम सेन के नेतृत्व में ‘जागरूक नागरिक मंच’ ने RTI, दस्तावेज़ों और जनजागरण अभियानों के माध्यम से इस घोटाले की परतें उजागर कीं।
“यह आलीराजपुर की शान और अस्मिता को निगलने की साजिश है। अगर यह रुका नहीं, तो देश भर की रियासतकालीन धरोहरें, भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से माफियाओं के कब्ज़े में चली जाएंगी।” — शिव ठाकुर
डॉ. अभय अरविंद बेडेकर पर अन्य भ्रष्टाचार मामले
लोकायुक्त भोपाल में दर्ज FIR में कलेक्टर डॉ. अभय बेडेकर पर भ्रष्टाचार और पद-दुरुपयोग के आरोप हैं:
त्रिशला गृह निर्माण संस्था प्रकरण:
- सिविल विवाद को आपराधिक रूप देना — आईपीसी की गंभीर धाराओं में केस दर्ज करवाया गया
- झूठी रिपोर्ट व बिना जांच कार्रवाई — वरिष्ठ अफसरों की मिलीभगत से गिरफ्तारी की सिफारिश
- लोकायुक्त की एफआईआर (30 अक्टूबर 2023) — भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7(g) के तहत आरोप
इंदौर मेट्रो भूमि विवाद:
2.68 हेक्टेयर की जगह केवल 2.1 हेक्टेयर मेट्रो डिपो को दी गई
शेष ₹50 करोड़ मूल्य की भूमि का प्लॉटिंग करवा दी गई
अपर कलेक्टर डॉ बेडेकर ने नियमों को दरकिनार कर आदेश दिए और समिति को अवैध लाभ पहुँचाया
यह मामला सिर्फ आलीराजपुर की शाही संपत्ति का नहीं, बल्कि:
भारत की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा, प्रशासनिक पारदर्शिता की परीक्षा, और जनजागरण एवं न्याय की लड़ाई का प्रतीक बन चुका है।
इस पूरे प्रकरण को न्यायपालिका, खोजी पत्रकारिता और जनता मिलकर एक मिसाल में बदल सकते हैं — ताकि भविष्य में कोई भी फर्जी दस्तावेजों और भ्रष्ट गठजोड़ के बल पर हमारी धरोहर को न हड़प सके।
आवश्यकता है कि पूरा देश इस पर ध्यान दे — क्योंकि यह साज़िश आलीराजपुर तक सीमित नहीं है।