CMHO और ड्रग विभाग की मिलीभगत से जबलपुर के अस्पतालों में फल-फूल रहा अवैध दवा कारोबार*
दवा हमारी, रुपया तुम्हारा!
रेवांचल टाइम्स जबलपुर
जबलपुर जिले के सरकारी और निजी अस्पताल अब स्वास्थ्य सेवा के बजाय खुले दवा बाजार में तब्दील हो चुके हैं, जहां मरीजों की मजबूरी का नंगा नाच हो रहा है। इन अस्पतालों में खुलेआम अवैध दवा दुकानें संचालित हो रही हैं, जो न तो पंजीकृत हैं और न ही किसी नियामक के अधीन। इन गैरकानूनी गतिविधियों में CMHO और ड्रग विभाग की खुली मिलीभगत सामने आ रही है, जिसे अब नजरअंदाज करना नामुमकिन हो गया है।
इलाज की शर्त – “दवा यहीं से लो, वरना इलाज नहीं होगा”
मरीजों और उनके परिजनों से जबरन कहा जा रहा है कि यदि दवा अस्पताल परिसर के भीतर चल रही “अनाधिकृत” दुकान से नहीं खरीदी गई, तो इलाज नहीं किया जाएगा। यह न केवल चिकित्सा नैतिकता के विरुद्ध है, बल्कि यह सीधे-सीधे मानवाधिकारों और उपभोक्ता संरक्षण कानून का उल्लंघन भी है।
बिना नाम और बिना लाइसेंस की दुकानें
- अस्पतालों के भीतर जो दुकानें चल रही हैं, उनमें से अधिकांश पर कोई बोर्ड, लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन विवरण नहीं होता
- ये दुकानें अस्पताल स्टाफ या प्रबंधन से जुड़े लोगों द्वारा संचालित होती हैं और इनके पीछे किसी फार्मासिस्ट की अधिकृत निगरानी नहीं होती।

450 रुपये में बिक रही 15 रुपये की विटामिन स्ट्रिप
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि ये दुकानें सामान्य दवाओं पर भी मनमाना मुनाफा वसूल रही हैं एक उदाहरण में:
- बाजार में 15 रुपये में मिलने वाली विटामिन की एक दवा स्ट्रिप को इन अवैध दुकानों में ₹450 में बेचा जा रहा है।
- इन दुकानों पर अज्ञात कंपनियों के “ब्रांडेड नाम” की दवाएं थोप दी जाती हैं, जिनकी गुणवत्ता संदिग्ध है और कीमतें आसमान छू रही हैं।
100 फीसदी अस्पतालों में चल रहा यह गोरखधंधा
स्थानीय सूत्रों का दावा है कि जबलपुर के लगभग **हर सरकारी और निजी अस्पताल में यह गोरखधंधा चल रहा है इन दवा दुकानों की जांच या कार्रवाई की कोई मिसाल अब तक नहीं देखने को मिली है। कारण साफ है — CMHO और ड्रग विभाग खुद इस खेल में हिस्सेदार बने हुए हैं
CMHO और ड्रग विभाग क्यों हैं मौन?
- ड्रग कंट्रोल विभाग के अफसरों की ओर से न तो निरीक्षण होता है, न ही छापे
- CMHO कार्यालय इन अवैध दुकानों को मौन स्वीकृति देता नजर आता है
- सूत्र बताते हैं कि हर महीने की बंधी-बंधाई रकम इन विभागों तक पहुंचती है, जिसके बदले में कार्रवाई की जगह संरक्षण दिया जाता है।
जनहित में सवाल उठाना जरूरी: - क्या गरीब मरीजों की मजबूरी का लाभ उठाना अब चिकित्सा व्यवसाय का हिस्सा बन गया है?
- ड्रग कंट्रोल विभाग और CMHO का असली काम जनता की सेवा है या निजी दुकानदारी का संरक्षण?
- क्या जब तक किसी की जान नहीं जाएगी, तब तक ये सिस्टम जागेगा नहीं?