“शाहपुर वन परिक्षेत्र में बाबूगिरी का ‘अमर’ अध्याय — आदेशों को दरकिनार कर रहे वनरक्षक मनोज दुबे!”
दैनिक रेवांचल टाइम्स डिंडोरी
अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, मध्यप्रदेश भोपाल के स्पष्ट आदेशों के बावजूद डिंडोरी जिले के वन मंडल कार्यालय में नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ रही हैं। खासकर वन परिक्षेत्र शाहपुर में पदस्थ वनरक्षक मनोज दुबे का मामला अब चर्चा का विषय बन चुका है।
वनरक्षक का पद, लेकिन वर्षों से बाबूगिरी का काम!
मनोज दुबे, जो मूलतः वनरक्षक के पद पर पदस्थ हैं, पिछले 12 से 13 वर्षों से शाहपुर में जमे हुए हैं। हैरत की बात यह कि इनका काम जंगल में नहीं बल्कि दफ्तर की कुर्सी पर बाबूगिरी करते हुए बीत रहा है। शासन के निर्देशों के विपरीत वर्षों से कार्यालयीन कामकाज संभालते हुए मलाईदार पद पर बने हुए हैं।
आदेश जारी, पर कार्रवाई नदारद
7 मार्च 2023 को भोपाल से जारी आदेश में स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया था कि वनरक्षक और वनपाल से कार्यालयीन कार्य नहीं लिया जाएगा। इसके बावजूद यह स्थिति बनी रहना इस बात का संकेत है कि मनोज दुबे को उच्च स्तर से किसी का संरक्षण प्राप्त है। चर्चा है कि इनके स्थानांतरण आदेश भी 2 से 3 बार जारी हो चुके हैं, लेकिन हर बार आदेश कागज़ों में ही सिमटकर रह गए।

“कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता!”
स्थानीय सूत्रों का दावा है कि मनोज दुबे खुलेआम यह कहते हैं — “चाहे जितनी शिकायतें कर लो, चाहे अखबार में खबर छपवा लो, मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मेरी पहुंच ऊपर तक है।” यही नहीं, उन्होंने कई बार पत्रकारों को भी इसी तरह की चुनौती दी है।
दफ्तर में दबंगई, और सवालों की फेहरिस्त
ऐसी भी चर्चाएं हैं कि कार्यालय के भीतर सरकारी धन के उपयोग में भी पारदर्शिता नहीं बरती जा रही। बाबूगिरी की इस मलाईदार कुर्सी पर बरसों से जमे मनोज दुबे की उपेक्षा के पीछे क्या सिर्फ सिस्टम की लाचारी है, या फिर कोई और ‘ताकत’ है जो उन्हें संरक्षण दे रही है?
जवाबदेही से बचता तंत्र
जनता अब यह जानना चाहती है कि क्या प्रशासन इस मामले में कोई संज्ञान लेगा? क्या शासन के आदेशों की खुलेआम अनदेखी करने वाले इस वनरक्षक पर कार्रवाई होगी? या फिर ये कहानी यूं ही वर्षों तक चलती रहेगी?
प्रशासन अब खामोश नहीं रह सकता — इस “स्थायी बाबू” पर कार्रवाई कब?