बैठकों तक सिमटी जिम्मेदारियां: कब होगी बड़ी कार्रवाई? “दैनिक रेवांचल टाइम्स की खबरों से मचा हड़कंप: बैठकें तो हुईं, बड़ी कार्रवाई अब भी बाकी”
“दैनिक रेवांचल टाइम्स की खबरों से मचा हड़कंप: बैठकें तो हुईं, बड़ी कार्रवाई अब भी बाकी”
“कब बनेगा उदाहरण? अस्पतालों की मनमानी पर बैठकों से आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहा प्रशासन?”
जबलपुर में प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर चुप्पी क्यों?
दैनिक रेवांचल टाइम्स, जबलपुर
अतुल कुमार
जबलपुर शहर में प्राइवेट अस्पतालों की अव्यवस्थाओं पर जिला प्रशासन, नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग और सीएमएचओ सिर्फ औपचारिकताएं निभाते दिख रहे हैं। एक के बाद एक बैठकें होती हैं, फाइलों में कार्रवाई के कागज सिमट जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर न तो अस्पतालों की मनमानी पर लगाम लगती है, न ही जनता को राहत मिलती है। सवाल यह उठता है कि कब होगी ऐसी ठोस कार्रवाई जो बाकी अस्पतालों के लिए एक नजीर बने?

अस्पतालों में नहीं मानकों की परवाह
शहर के कई प्राइवेट अस्पताल अग्नि सुरक्षा मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। फायर एग्जिट की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं, पार्किंग की जगह पर मरीजों और उनके परिजनों को वाहन खड़ा करने की अनुमति नहीं, और संकरी गलियों में बने ये अस्पताल कभी भी बड़ी दुर्घटना को दावत दे सकते हैं। फायर ब्रिगेड या एम्बुलेंस जैसे आपातकालीन वाहन वहां समय पर पहुंच ही नहीं सकते।
कागजों में कार्रवाई, जमीनी हकीकत में शून्य
स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम लगातार बैठकों की औपचारिकता निभा रहे हैं। सीएमएचओ और अन्य अधिकारी बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ नोटिस जारी कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। आखिर क्यों नहीं होती वो बड़ी कार्रवाई जिसकी जरूरत है? कौन लोग हैं जो इन अस्पतालों को नियमों से खिलवाड़ करने की छूट दे रहे हैं?

किसकी है जिम्मेदारी? कौन उठाएगा जवाबदेही?
हर बार एक बड़ी घटना का इंतजार क्यों किया जाता है? जब हादसा होता है, तब जिम्मेदार कौन होगा? प्रशासन और विभाग के अधिकारी यह स्पष्ट क्यों नहीं करते कि किसी भी अप्रिय घटना की स्थिति में दोषियों पर क्या कार्रवाई होगी? जनता पूछ रही है कि आखिर सरकार और प्रशासन कब जागेंगे?

सेटिंग-गेटिंग या लापरवाही?
सूत्रों की मानें तो कई बार अस्पताल संचालकों और अधिकारियों के बीच अंदरखाने सेटिंग हो जाती है, जिससे कार्रवाई की आंच अस्पताल प्रबंधन तक पहुंच ही नहीं पाती। अगर ऐसा नहीं है, तो फिर आखिर क्यों नहीं बन पा रही कोई मिसाल? क्यों नहीं हो रही ऐसी सख्त कार्रवाई कि बाकी अस्पताल संचालक भी सबक लें?

जनता की माँग: अब हो ठोस एक्शन
शहर की जनता की यही मांग है कि जिला प्रशासन, नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग अब बैठकों से आगे बढ़ें और ऐसी कड़ी कार्रवाई करें, जिससे अस्पतालों में नियमों का पालन अनिवार्य हो। वरना वह दिन दूर नहीं जब एक बड़ी दुर्घटना पूरे सिस्टम की पोल खोल देगी।